Dr. K. S. Bhardwaj Books

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चम्बल का शिक्षित बगावती (उपन्यास)
चम्बल का शिक्षित बगावती (उपन्यास)
Human Resource Development In Education (Management )
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रह से भटकता पुरुष नारी विमर्श
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शिक्षण क्षेत्रीय हास परिहास Germane Humour In Education
शिक्षण क्षेत्रीय हास परिहास Germane Humour In Education
1857 The Women Warriors Of Jhansi. The drama written by Prof. K. S. Bhardwaj Bhardwaj KS and published by Namya Press tells a lot about the #FirstWarOfIndependence. 
The Sanatan (Hindu) Kingdoms like #Gwalior #Datia and #Orchha were siding with British, contrary to them there were several Muslims who sacrificed their lives along with #RaniLaxmiBai. 
Among them were Azeezun Bai, Ghaus Khan, Moti Bai, Khuda Bux, Mundar Khatun, and Nawab of Banda, Nawab Ali Bahadur II. The dancing women known as Tawayafs, laid down their all for their motherland. Even #MahatmaGandhi had acknowledged their contribution. The reader may be aware that majority of Tawayafs were #Muslims.
Several tribals, dalits and nomads stood shoulder to shoulder with the Rani. Jhalkari Bhai belonged to backward class. 
Mundar Khatun had pledged that she will protect the queen till her last breath and she stood by her oath. Before the Rani was attacked, Mundar had a gunshot which took her life. Rest in the drama. We salute all these warriors.
1857 The Women Warriors Of Jhansi. The drama written by Prof. K. S. Bhardwaj Bhardwaj KS and published by Namya Press tells a lot about the #FirstWarOfIndependence. The Sanatan (Hindu) Kingdoms like #Gwalior #Datia and #Orchha were siding with British, contrary to them there were several Muslims who sacrificed their lives along with #RaniLaxmiBai. Among them were Azeezun Bai, Ghaus Khan, Moti Bai, Khuda Bux, Mundar Khatun, and Nawab of Banda, Nawab Ali Bahadur II. The dancing women known as Tawayafs, laid down their all for their motherland. Even #MahatmaGandhi had acknowledged their contribution. The reader may be aware that majority of Tawayafs were #Muslims. Several tribals, dalits and nomads stood shoulder to shoulder with the Rani. Jhalkari Bhai belonged to backward class. Mundar Khatun had pledged that she will protect the queen till her last breath and she stood by her oath. Before the Rani was attacked, Mundar had a gunshot which took her life. Rest in the drama. We salute all these warriors.
ये उपन्यास समाज में व्याप्त बुराइयों के साथ साथ बलात्कार जैसे जघन्य अपराध पर विस्तृत चिंतन करता है और पीड़िता के मनोविज्ञान पर प्रकाश डालता है. इसीलिये उपन्यास का शीर्षक बस, बस, और अहिल्या नहीं.
ये उपन्यास समाज में व्याप्त बुराइयों के साथ साथ बलात्कार जैसे जघन्य अपराध पर विस्तृत चिंतन करता है और पीड़िता के मनोविज्ञान पर प्रकाश डालता है. इसीलिये उपन्यास का शीर्षक बस, बस, और अहिल्या नहीं.
भारत जोड़ो यात्रा (राहुल गाँधी जी की)
भारत जोड़ो यात्रा (राहुल गाँधी जी की)
"हमारे सम्मानीय मित्र,ख्यात उपन्यासकार डाॅ. के.एस.
भारद्वाज जी की लगभग 12-13 पुस्तकों के साथ
' इश्क -ए - ज़िन्दगी' को पढकर एक अलग ही आनन्द
आया !! 😊
इसके प्राक्कथन में  बहुत ही सटीक व सारगर्भित बात कही गयी है ......"संसार उथल पुथल से भरपूर है मगर एक बात    ध्यान देने योग्य है कि अधिकतर उथल पुथल
मानव द्वारा ही निर्मित हैं। उदाहरण के रूप में देह बाज़ार को ही ले लें।अगर उन मजबूरों के जीवन का
सूक्ष्म अध्ययन किया जाये तो देखेंगे कि उनमें अधिकतर हालात की मारी पीड़ितायें होती है।"😥
      " उपन्यास का एक पात्र अपना विवेक खोकर सब कुछ गंवा बैठता है, तो  (दूसरी) पात्र जिस्मफरोश हालातों से मजबूर होकर अपना सब कुछ गंवा देती है।"🤔😫
              पुस्तक में वर्णित संवादों के माध्यम से लेखक ने हास परिहास, प्रेम, आदर, वियोग, मिलन, वासना, रोमांच,पाप - पुण्य, आत्मसंतोष जैसे भावों का बहुत सुन्दर शब्द शैली में सरस एवं रोचक चित्रण किया है . यथा ------👇👇👇
"समय का पहिया तेजी से घूम रहा था।लगभग छह माह गुजर चुके थे।निकटता के बावजूद क्षमिता और क्षशांक में संवादहीनता सी बनी हुई थी। गज़ब का मधुर मगर मौन संबन्ध बन चुका था।दोनों संतुष्ट थे। फिर भी एक दूसरे से अनजान ।"
" अच्छा भैया,भाभी से इतनी जल्दी मस्का लगाना
भी सीख गये ! "
  "वाह री नारी। तेरा हृदय कितना कोमल है। तू ही सरस्वती है तो तू ही जीवनदायिनी। तू ही लक्ष्मी है तो ही क्षमिता और तू ही काली जो दुष्टों का नाश करती है। "
    " भूल गई न ? हमारा नाम क्षशांक है।"  
"ओह ! मगर आप मुझसे बड़े हैं।नाम कैसे ले सकती हूं ?"
" मित्र न बड़े होते हैं न छोटे। इसीलिए संसार में सखाभाव सबसे अच्छा होता है।" 
  "अन्तर्द्वन्द जारी था कि क्षमिता ने फिर कहा," मौन
का व्रत लिया हुआ है क्या?" 
" मौन तो नहीं। सोच रहा हूं कि स्त्री इतनी जिद्दी क्यों है?" मुस्कराते हुए शशांक ने कहा ।
क्षमिता ने कहा, " क्योंकि स्त्री का वास्ता उससे भी अधिक जिद्दी पुरूष से पड़ता है।" 
  "गाड़ी ओझल हो गई थी। क्षमिता ने लम्बा साँस छोड़ा। भारी मन से गेस्ट हाऊस की ओर लौट चली।
उसके मन में कहीं से आवाज़ आई," अब लम्बा
साँस छोड़ती हो। 🤔मोह में फँस गई हो न? "😐
      आश्चर्य और मजे की बात है कि लेखक जिसने इस कथानक का ताना बाना बुना है, स्वयं नहीं जानता है कि उपन्यास का नायक कौन है और नायिका कौन है !?!?!😯🤔 एक तरह से यह उपन्यास नायकों और नायिकाओं की कथा बन पड़ी है !!! 🤗😍
यदि आपको वास्तविक नायक और नायिका के बारे में जानना है तो आपको यह 👇 उपन्यास पढ़ना पड़ेगा ।। ✅😆😅" Copied From Portia Gaur Timeline.
"हमारे सम्मानीय मित्र,ख्यात उपन्यासकार डाॅ. के.एस. भारद्वाज जी की लगभग 12-13 पुस्तकों के साथ ' इश्क -ए - ज़िन्दगी' को पढकर एक अलग ही आनन्द आया !! 😊 इसके प्राक्कथन में बहुत ही सटीक व सारगर्भित बात कही गयी है ......"संसार उथल पुथल से भरपूर है मगर एक बात ध्यान देने योग्य है कि अधिकतर उथल पुथल मानव द्वारा ही निर्मित हैं। उदाहरण के रूप में देह बाज़ार को ही ले लें।अगर उन मजबूरों के जीवन का सूक्ष्म अध्ययन किया जाये तो देखेंगे कि उनमें अधिकतर हालात की मारी पीड़ितायें होती है।"😥 " उपन्यास का एक पात्र अपना विवेक खोकर सब कुछ गंवा बैठता है, तो (दूसरी) पात्र जिस्मफरोश हालातों से मजबूर होकर अपना सब कुछ गंवा देती है।"🤔😫 पुस्तक में वर्णित संवादों के माध्यम से लेखक ने हास परिहास, प्रेम, आदर, वियोग, मिलन, वासना, रोमांच,पाप - पुण्य, आत्मसंतोष जैसे भावों का बहुत सुन्दर शब्द शैली में सरस एवं रोचक चित्रण किया है . यथा ------👇👇👇 "समय का पहिया तेजी से घूम रहा था।लगभग छह माह गुजर चुके थे।निकटता के बावजूद क्षमिता और क्षशांक में संवादहीनता सी बनी हुई थी। गज़ब का मधुर मगर मौन संबन्ध बन चुका था।दोनों संतुष्ट थे। फिर भी एक दूसरे से अनजान ।" " अच्छा भैया,भाभी से इतनी जल्दी मस्का लगाना भी सीख गये ! " "वाह री नारी। तेरा हृदय कितना कोमल है। तू ही सरस्वती है तो तू ही जीवनदायिनी। तू ही लक्ष्मी है तो ही क्षमिता और तू ही काली जो दुष्टों का नाश करती है। " " भूल गई न ? हमारा नाम क्षशांक है।" "ओह ! मगर आप मुझसे बड़े हैं।नाम कैसे ले सकती हूं ?" " मित्र न बड़े होते हैं न छोटे। इसीलिए संसार में सखाभाव सबसे अच्छा होता है।" "अन्तर्द्वन्द जारी था कि क्षमिता ने फिर कहा," मौन का व्रत लिया हुआ है क्या?" " मौन तो नहीं। सोच रहा हूं कि स्त्री इतनी जिद्दी क्यों है?" मुस्कराते हुए शशांक ने कहा । क्षमिता ने कहा, " क्योंकि स्त्री का वास्ता उससे भी अधिक जिद्दी पुरूष से पड़ता है।" "गाड़ी ओझल हो गई थी। क्षमिता ने लम्बा साँस छोड़ा। भारी मन से गेस्ट हाऊस की ओर लौट चली। उसके मन में कहीं से आवाज़ आई," अब लम्बा साँस छोड़ती हो। 🤔मोह में फँस गई हो न? "😐 आश्चर्य और मजे की बात है कि लेखक जिसने इस कथानक का ताना बाना बुना है, स्वयं नहीं जानता है कि उपन्यास का नायक कौन है और नायिका कौन है !?!?!😯🤔 एक तरह से यह उपन्यास नायकों और नायिकाओं की कथा बन पड़ी है !!! 🤗😍 यदि आपको वास्तविक नायक और नायिका के बारे में जानना है तो आपको यह 👇 उपन्यास पढ़ना पड़ेगा ।। ✅😆😅" Copied From Portia Gaur Timeline.
कोरोना त्रासदियों के बीच अनूठी प्रेम कथा.
कोरोना त्रासदियों के बीच अनूठी प्रेम कथा.
दिल्ली दरबार लगा था. महल में गहमा गहमी मची थी. जालोर पर जीत हासिल कर के अलाउद्दीन दिल्ली लौट रहे थे. सभी उनका बेकरारी से इंतज़ार कर रहे थे.

शहजादी फ़िरोज़ा गुलाब संग उसी झरोखे में बैठी थी जिसके अंदर से झाँकते हुए वह युवराज वीरन को दिल दे बैठी थी.

यह समाचार तो पहुँच चुका था कि जालोर को फतह कर लिया गया है मगर पूरी जानकारी अभी तक किसी के पास नहीं थी.

न शहजादी फ़िरोज़ा को अपने होने वाले शौहर के बारे में कुछ पता था और न ही गुलाब को अपने जिगरी दोस्त के बारे में.

तभी नगाड़े बज उठे जो संकेत थे कि सुल्तान अलाउद्दीन किले में प्रवेश कर रहे हैं.

थोड़ी देर बाद ही सुल्तान दरबार में पहुँचे. सभी ने उनका इस्तकबाल किया. सुल्तान के साथ एक सैनिक अपने हाथ में एक बड़ी मञ्जूषा लिए हुए था.

अलाउद्दीन ने उस मञ्जूषा को अपने हाथ में लिया और झरोखे की ओर देखते हुए कहा, “बेटी फिरोजा, हम युवराज को तो न ला सके मगर उसका और उसके साथी का शीश हम आपको भेंट करते हैं.”

ऐसा सुनना था कि फ़िरोज़ा शिला बन गई. न वो बोल पा रही थी और न ही रो पा रही थी. दहशत उसके दिल में समा गई थी.

उसी समय एक दासी मञ्जूषा लेकर शहजादी के पास पहुँची. गुलाब ने उसे खोला. उसने जो उसमें देखा, देख कर वो भी काठ हो गई क्योंकि युवराज के साथ साथ उसमें मलखान का शीश भी था.

दासियों ने दोनों को संभाला और जनानखाने में ले गईं. मञ्जूषा को उनके पास छोड़ दासियाँ लौट गईं.

शहजादी और गुलाब दोनों होश में आ चुकी थी मगर अब भी सकते में थीं. शहजादी हैरान थी कि वो दूसरा शीश किसका है?

गुलाब ने कहा, “जिसका भी हो. इसे मुझे दे दें. मैं इसका विधि विधान के साथ अंतिम संस्कार करा दूँगी.”

मञ्जूषा में शीश लेकर गुलाब अपने कोठे पर पहुँची जहाँ चमेली जान उसकी राह तक रही थी. गुलाब की बदहवासी को देख कर वो चौंकी. उसने मञ्जूषा को खोल कर देखा. मलखान के शीश को देख कर वो चीख पड़ी.

गुलाब मलखान के शीश को गोदी में लेकर सारी रात बैठी रही. चमेली समझ नहीं पा रही थी कि गुलाब को सब्र करने की राय कैसे दे? वो जानती थी कि वे दोनों दो शरीर मगर एक जान थे.

उधर महल में शहजादी ने युवराज के शीश को अपनी गोद में रखने की कोशिश की. उसने देखा कि युवराज के शीश ने उसकी ओर से अपना मुँह फेर लिया है.

इस पर शहजादी के मुँह से अकस्मात निम्न शब्द फूट पड़े, “मैं अब तुर्क नहीं बल्कि हिंदू हो गई हूँ. तुम मेरे भर्तार हो, अपना मुँह यूँ न फेरो.”2

कहा जाता कि जैसे ही फ़िरोज़ा ने ये शब्द कहे, युवराज ने अपना रुख अपनी महबूबा की ओर कर लिया था.

अगले दिन दिल्ली वालों ने सुना कि शहजादी और तवायफ गुलाब ने यमुना में छलांग लगा कर खुदकशी कर ली.

दोनों की बाहों में एक एक शीश था जिनको वे अपने सीने से लगाए हुए थीं. युवराज वीरन और शहजादी के इश्क के बारे में तो सभी जानते थे मगर गुलाब जान जिस शीश को लिए थी, वो किसका था और गुलाब का उससे क्या रिश्ता था, कोई न जान सका?

लोगों ने गुलाब की हमराज चमेली से पूछने की कोशिश भी की मगर चमेली ने गुलाब और मलखान की पाक साफ़ मोहब्बत को नापाक न तो किया और न होने दिया.

अगली सुबह चमेली ने अकस्मात आसमान की ओर देखा. वो देखती क्या है कि सितारों के दो जोड़े एक दुसरे में समा गए हैं और धीरे धीरे पूर्व दिशा की ओर लुप्त हो गए हैं.

चमेली अपनी आँखें मल मल कर उस अचरज को देख रही थी. वो जानना चाहती थी कि जो कुछ वो देख रही हैं वो सच है या भ्रम?

पता नहीं कि वो सच्चाई जान पाई या नहीं.
दिल्ली दरबार लगा था. महल में गहमा गहमी मची थी. जालोर पर जीत हासिल कर के अलाउद्दीन दिल्ली लौट रहे थे. सभी उनका बेकरारी से इंतज़ार कर रहे थे. शहजादी फ़िरोज़ा गुलाब संग उसी झरोखे में बैठी थी जिसके अंदर से झाँकते हुए वह युवराज वीरन को दिल दे बैठी थी. यह समाचार तो पहुँच चुका था कि जालोर को फतह कर लिया गया है मगर पूरी जानकारी अभी तक किसी के पास नहीं थी. न शहजादी फ़िरोज़ा को अपने होने वाले शौहर के बारे में कुछ पता था और न ही गुलाब को अपने जिगरी दोस्त के बारे में. तभी नगाड़े बज उठे जो संकेत थे कि सुल्तान अलाउद्दीन किले में प्रवेश कर रहे हैं. थोड़ी देर बाद ही सुल्तान दरबार में पहुँचे. सभी ने उनका इस्तकबाल किया. सुल्तान के साथ एक सैनिक अपने हाथ में एक बड़ी मञ्जूषा लिए हुए था. अलाउद्दीन ने उस मञ्जूषा को अपने हाथ में लिया और झरोखे की ओर देखते हुए कहा, “बेटी फिरोजा, हम युवराज को तो न ला सके मगर उसका और उसके साथी का शीश हम आपको भेंट करते हैं.” ऐसा सुनना था कि फ़िरोज़ा शिला बन गई. न वो बोल पा रही थी और न ही रो पा रही थी. दहशत उसके दिल में समा गई थी. उसी समय एक दासी मञ्जूषा लेकर शहजादी के पास पहुँची. गुलाब ने उसे खोला. उसने जो उसमें देखा, देख कर वो भी काठ हो गई क्योंकि युवराज के साथ साथ उसमें मलखान का शीश भी था. दासियों ने दोनों को संभाला और जनानखाने में ले गईं. मञ्जूषा को उनके पास छोड़ दासियाँ लौट गईं. शहजादी और गुलाब दोनों होश में आ चुकी थी मगर अब भी सकते में थीं. शहजादी हैरान थी कि वो दूसरा शीश किसका है? गुलाब ने कहा, “जिसका भी हो. इसे मुझे दे दें. मैं इसका विधि विधान के साथ अंतिम संस्कार करा दूँगी.” मञ्जूषा में शीश लेकर गुलाब अपने कोठे पर पहुँची जहाँ चमेली जान उसकी राह तक रही थी. गुलाब की बदहवासी को देख कर वो चौंकी. उसने मञ्जूषा को खोल कर देखा. मलखान के शीश को देख कर वो चीख पड़ी. गुलाब मलखान के शीश को गोदी में लेकर सारी रात बैठी रही. चमेली समझ नहीं पा रही थी कि गुलाब को सब्र करने की राय कैसे दे? वो जानती थी कि वे दोनों दो शरीर मगर एक जान थे. उधर महल में शहजादी ने युवराज के शीश को अपनी गोद में रखने की कोशिश की. उसने देखा कि युवराज के शीश ने उसकी ओर से अपना मुँह फेर लिया है. इस पर शहजादी के मुँह से अकस्मात निम्न शब्द फूट पड़े, “मैं अब तुर्क नहीं बल्कि हिंदू हो गई हूँ. तुम मेरे भर्तार हो, अपना मुँह यूँ न फेरो.”2 कहा जाता कि जैसे ही फ़िरोज़ा ने ये शब्द कहे, युवराज ने अपना रुख अपनी महबूबा की ओर कर लिया था. अगले दिन दिल्ली वालों ने सुना कि शहजादी और तवायफ गुलाब ने यमुना में छलांग लगा कर खुदकशी कर ली. दोनों की बाहों में एक एक शीश था जिनको वे अपने सीने से लगाए हुए थीं. युवराज वीरन और शहजादी के इश्क के बारे में तो सभी जानते थे मगर गुलाब जान जिस शीश को लिए थी, वो किसका था और गुलाब का उससे क्या रिश्ता था, कोई न जान सका? लोगों ने गुलाब की हमराज चमेली से पूछने की कोशिश भी की मगर चमेली ने गुलाब और मलखान की पाक साफ़ मोहब्बत को नापाक न तो किया और न होने दिया. अगली सुबह चमेली ने अकस्मात आसमान की ओर देखा. वो देखती क्या है कि सितारों के दो जोड़े एक दुसरे में समा गए हैं और धीरे धीरे पूर्व दिशा की ओर लुप्त हो गए हैं. चमेली अपनी आँखें मल मल कर उस अचरज को देख रही थी. वो जानना चाहती थी कि जो कुछ वो देख रही हैं वो सच है या भ्रम? पता नहीं कि वो सच्चाई जान पाई या नहीं.
‘प्रारब्ध’ मेरी नज़र में
✍✍✍✍✍✍
डॉ भारद्वाज का कहानी संग्रह ‘प्रारब्ध’ मिला. सुखद अनुभूति हुई. बाल मनोविज्ञान पर आधारित कई कहानियाँ पढ़ने को मिली. ऐसी ही कहानियाँ हैं ‘खिड़कियाँ, पहला प्यार, पूर्वजन्म का अधूरा प्रेम, बलि, कड़की के कहकहे, भय का भूत,’ आदि. बाल सुलभ उत्सुकता और निश्छल प्रेम से ओतप्रोत ये काहानियाँ दिल को छू लेती हैं.
भूत-प्रेत होते हों या नहीं होते हों मगर ये सत्य है कि कुछ अदृश्य और उपकारी शक्तियाँ होती हैं जो आड़े समय में सीधे-सादे लोगों की मदद करती हैं. ये तथ्य प्रमाणित होता है कहानी, ‘वह कौन थी, और वह आता है देवदूत बन कर से. श्राप या इत्तफाक,’ इंसान के लोभ, लालच, कुटिलता और उनके भयंकर परिणामों का उत्कृष्ट उदाहरण हैं. 
लेखक ने नक्सलवाद पर भी अपने विचार ‘मूक प्रतिशोध’ और ‘क़र्ज़’ में व्यक्त किये हैं. आजकल आध्यात्म के नाम पर नवयुवकों को खूब ठगा और छला जा रहा है. ‘आध्यात्मिक’ और ‘नास्तिक’ ऐसी ही कहानियाँ है जो नई पीढ़ियों का मार्गदर्शन करती हैं. गृहस्थ जीवन की उठापठक मिलती है कहानी ‘ननवा, वत्सला’ और ‘पति-पत्नि’ में. 
एक बात जो बहुत रोचक है वह है कि इन कहानियों की आकस्मिकता जो उत्सुकता को अंत तक बनाए रखती है. कहानी ‘खिड़कियाँ’ को ही ले लें. आकस्मिकता से भरपूर ये कहानी अंत तक उत्सुकता बनाए रखती है. पूर्ण आशा है कि पाठकों को यह कहानी संग्रह अवश्य पसंद आएगा.
नरेश शर्मा, संपादक, वाणिज्य समाचार, कानपुर
Naresh Sharma
‘प्रारब्ध’ मेरी नज़र में ✍✍✍✍✍✍ डॉ भारद्वाज का कहानी संग्रह ‘प्रारब्ध’ मिला. सुखद अनुभूति हुई. बाल मनोविज्ञान पर आधारित कई कहानियाँ पढ़ने को मिली. ऐसी ही कहानियाँ हैं ‘खिड़कियाँ, पहला प्यार, पूर्वजन्म का अधूरा प्रेम, बलि, कड़की के कहकहे, भय का भूत,’ आदि. बाल सुलभ उत्सुकता और निश्छल प्रेम से ओतप्रोत ये काहानियाँ दिल को छू लेती हैं. भूत-प्रेत होते हों या नहीं होते हों मगर ये सत्य है कि कुछ अदृश्य और उपकारी शक्तियाँ होती हैं जो आड़े समय में सीधे-सादे लोगों की मदद करती हैं. ये तथ्य प्रमाणित होता है कहानी, ‘वह कौन थी, और वह आता है देवदूत बन कर से. श्राप या इत्तफाक,’ इंसान के लोभ, लालच, कुटिलता और उनके भयंकर परिणामों का उत्कृष्ट उदाहरण हैं. लेखक ने नक्सलवाद पर भी अपने विचार ‘मूक प्रतिशोध’ और ‘क़र्ज़’ में व्यक्त किये हैं. आजकल आध्यात्म के नाम पर नवयुवकों को खूब ठगा और छला जा रहा है. ‘आध्यात्मिक’ और ‘नास्तिक’ ऐसी ही कहानियाँ है जो नई पीढ़ियों का मार्गदर्शन करती हैं. गृहस्थ जीवन की उठापठक मिलती है कहानी ‘ननवा, वत्सला’ और ‘पति-पत्नि’ में. एक बात जो बहुत रोचक है वह है कि इन कहानियों की आकस्मिकता जो उत्सुकता को अंत तक बनाए रखती है. कहानी ‘खिड़कियाँ’ को ही ले लें. आकस्मिकता से भरपूर ये कहानी अंत तक उत्सुकता बनाए रखती है. पूर्ण आशा है कि पाठकों को यह कहानी संग्रह अवश्य पसंद आएगा. नरेश शर्मा, संपादक, वाणिज्य समाचार, कानपुर Naresh Sharma
#BookReview #bookreviews #BookRecommendations #bookreading 
वीर अर्जुन में प्रकाशित समीक्षा. 
#publisherss
Namya Press Advik Publicationअद्विक पब्लिकेशन
#BookReview #bookreviews #BookRecommendations #bookreading वीर अर्जुन में प्रकाशित समीक्षा. #publisherss Namya Press Advik Publicationअद्विक पब्लिकेशन
झलकारी बाई, रानी झांसी की हमशक्ल. इसी ने रानी को किले से बाहर निकलने में सहायता की थी. इन्होने रानी का वेश भर कर अंग्रेजों को चकमा दे दिया था और अंत में अपने जीवन को मातृभूमि पर न्योछावर कर दिया था. 

झलकारी बाई झाँसी के एक गाँव के किसान की बेटी थी. ये पिछड़ी जाति से थी. बचपन से ही बहादुर. अपने हंसिये से शेर को मार डाला था. कुश्ती और पहलवानी वैसे ही करती थी जैसे युवक. घोड़े की सवारी गाँव के खच्चरों पर सवार होकर सीखी. 

चूँकि झलकारी दिलेर थी, इसके पिता ने भी इसको खूब उत्साहित किया. लाठी चलाना, भाला चलाना सीखा. उन दिनों बुन्देलखंड डाकुओं से ग्रस्त था. झलकारी ने गाँव वालों को एक किया और डाकुओं का मुलाबला करने हेतु प्रेरित किया. इसका अच्छा परिणाम हुआ था.

झलकारी के पति पूर्ण सिंह भी रानी की सेना में थे. जब रानी की पहली मुलाकात झलकारी से हुई तो वे उसके कारनामों को सुन कर हैरान हो गई. हमशक्ल तो थी ही. झलकारी को नारी सेना का प्रमुख बना दिया गया. 

शादी के बाद ही पति-पत्नि ने शहादत दे दी थी. शायद इनकी कोई औलाद न हो पाई थी. सभी अज्ञात वीरांगनाओं को नमन.
झलकारी बाई, रानी झांसी की हमशक्ल. इसी ने रानी को किले से बाहर निकलने में सहायता की थी. इन्होने रानी का वेश भर कर अंग्रेजों को चकमा दे दिया था और अंत में अपने जीवन को मातृभूमि पर न्योछावर कर दिया था. झलकारी बाई झाँसी के एक गाँव के किसान की बेटी थी. ये पिछड़ी जाति से थी. बचपन से ही बहादुर. अपने हंसिये से शेर को मार डाला था. कुश्ती और पहलवानी वैसे ही करती थी जैसे युवक. घोड़े की सवारी गाँव के खच्चरों पर सवार होकर सीखी. चूँकि झलकारी दिलेर थी, इसके पिता ने भी इसको खूब उत्साहित किया. लाठी चलाना, भाला चलाना सीखा. उन दिनों बुन्देलखंड डाकुओं से ग्रस्त था. झलकारी ने गाँव वालों को एक किया और डाकुओं का मुलाबला करने हेतु प्रेरित किया. इसका अच्छा परिणाम हुआ था. झलकारी के पति पूर्ण सिंह भी रानी की सेना में थे. जब रानी की पहली मुलाकात झलकारी से हुई तो वे उसके कारनामों को सुन कर हैरान हो गई. हमशक्ल तो थी ही. झलकारी को नारी सेना का प्रमुख बना दिया गया. शादी के बाद ही पति-पत्नि ने शहादत दे दी थी. शायद इनकी कोई औलाद न हो पाई थी. सभी अज्ञात वीरांगनाओं को नमन.
Yesterday, I had introduced my readers with #CulturalImpact of the #Tawayafs on Indian culture. The book, "The Unsung Martyred Tawayafs," gives detailed account of the sacrifice each Tawayaf made in the #FreedomStruggle. The book contains life history of about top twenty Tawayafs and their contribution in the struggle for freedom from #BritishRulers.

It does not mean that other Tawayafs had no role in the freedom movement. They had and that was to assist their leaders in different ways. You may be surprised to know that several Tawayafs gave shelter to the revolutionaries like Chandrashekhar Azad and Ram Prashad Bismil.

Several Tawayafs donated their income or part of it to the revolutionaries. Some made arrangement of arms and ammunition for the freedom fighters. Even Mahatma Gandhi had once asked #GauharJan to do a #Muzra for collection of funds; and she had done that. 

Azeezunbai, a tawayaf of Kanpur had opted death than telling whereabouts of #NanaSahebPeshwa and #TantyaTope. She was tied on the mouth of a cannon and blasted. 

We the nationalists can never forget their and unknown tawayaf’s sacrifices. #Jaihind.
Yesterday, I had introduced my readers with #CulturalImpact of the #Tawayafs on Indian culture. The book, "The Unsung Martyred Tawayafs," gives detailed account of the sacrifice each Tawayaf made in the #FreedomStruggle. The book contains life history of about top twenty Tawayafs and their contribution in the struggle for freedom from #BritishRulers. It does not mean that other Tawayafs had no role in the freedom movement. They had and that was to assist their leaders in different ways. You may be surprised to know that several Tawayafs gave shelter to the revolutionaries like Chandrashekhar Azad and Ram Prashad Bismil. Several Tawayafs donated their income or part of it to the revolutionaries. Some made arrangement of arms and ammunition for the freedom fighters. Even Mahatma Gandhi had once asked #GauharJan to do a #Muzra for collection of funds; and she had done that. Azeezunbai, a tawayaf of Kanpur had opted death than telling whereabouts of #NanaSahebPeshwa and #TantyaTope. She was tied on the mouth of a cannon and blasted. We the nationalists can never forget their and unknown tawayaf’s sacrifices. #Jaihind.
तहजीब रक्षक तवायफों पर लिखी ये पुस्तक बताती हैं कि तवायफों ने भारतीय गंगा-जमुनी तहजीब को कैसे महफूज़ रखा था. उनके इसी हुनर से परेशान होकर अग्रेजों ने उनको बदनाम करना शुरू कर दिया था, यहाँ एक बार बतानी अत्यावश्यक है. इन तवायफों का शारीरिक संबंध उसी से होता था जिनसे उनको प्रेम हो जाता था.

अमीर और रजवाड़े अपने बच्चों को तहजीब सीखने हेतु इनके पास वैसे ही भेजा करते थे जैसे आजकल लोग अपने बच्चों को ट्यूशन पढ़ने हेतु शिक्षकों के पास पढ़ने भेजते हैं.

उन तवायफों ने आजादी की लड़ाई में भी बढ़ चढ़ कर हिस्सा लिया था. ये दूसरा कारण था कि अंग्रेजों ने उनको रंडी और वेश्या कहना शुरू कर दिया था. उसके बाद उन तवायफों के हालात खराब होते चले गए.

और अधिक जानने हेतु पुस्तक को पढ़ना होगा.
तहजीब रक्षक तवायफों पर लिखी ये पुस्तक बताती हैं कि तवायफों ने भारतीय गंगा-जमुनी तहजीब को कैसे महफूज़ रखा था. उनके इसी हुनर से परेशान होकर अग्रेजों ने उनको बदनाम करना शुरू कर दिया था, यहाँ एक बार बतानी अत्यावश्यक है. इन तवायफों का शारीरिक संबंध उसी से होता था जिनसे उनको प्रेम हो जाता था. अमीर और रजवाड़े अपने बच्चों को तहजीब सीखने हेतु इनके पास वैसे ही भेजा करते थे जैसे आजकल लोग अपने बच्चों को ट्यूशन पढ़ने हेतु शिक्षकों के पास पढ़ने भेजते हैं. उन तवायफों ने आजादी की लड़ाई में भी बढ़ चढ़ कर हिस्सा लिया था. ये दूसरा कारण था कि अंग्रेजों ने उनको रंडी और वेश्या कहना शुरू कर दिया था. उसके बाद उन तवायफों के हालात खराब होते चले गए. और अधिक जानने हेतु पुस्तक को पढ़ना होगा.
विद्यालयों ,महाविद्यालयों और विश्वविद्यालयों के प्राचार्यों को आजकल विविध और जटिल समस्याओं से झूझना पड़ता है. अधिकतर देखा गया है कि जटिलता को देख कर प्राचार्य समस्या कीई ओर से आँख बंद कर लेते हैं. ये ठीक नहीं.

हमने अपने सेवाकाल में समस्याओं को दरकिनार नहीं किया. अगर किसी समस्या के उजागर होने पर महाविद्यालय की छवि पर भी असर पड़ता था तो भी हम उसे दरकिनार नहीं करते थे. कारण? बुराई को जड़ में ही खत्म क्र दिया जाये तो सर्वश्रेष्ठ.
ये पुस्तक करीब बीस ऐसी समस्याओं का अध्ययन और मूल्यांकन करती है जिनको अगर दबा दिया जाता तो वे विकराल रूप ले सकती थी. मगर समस्या को  समय पर हाथ में लिया गया और उसके परिणाम भी अच्छे मिले.  
#Publishers: Gyan Geeta Prakashan
विद्यालयों ,महाविद्यालयों और विश्वविद्यालयों के प्राचार्यों को आजकल विविध और जटिल समस्याओं से झूझना पड़ता है. अधिकतर देखा गया है कि जटिलता को देख कर प्राचार्य समस्या कीई ओर से आँख बंद कर लेते हैं. ये ठीक नहीं. हमने अपने सेवाकाल में समस्याओं को दरकिनार नहीं किया. अगर किसी समस्या के उजागर होने पर महाविद्यालय की छवि पर भी असर पड़ता था तो भी हम उसे दरकिनार नहीं करते थे. कारण? बुराई को जड़ में ही खत्म क्र दिया जाये तो सर्वश्रेष्ठ. ये पुस्तक करीब बीस ऐसी समस्याओं का अध्ययन और मूल्यांकन करती है जिनको अगर दबा दिया जाता तो वे विकराल रूप ले सकती थी. मगर समस्या को समय पर हाथ में लिया गया और उसके परिणाम भी अच्छे मिले. #Publishers: Gyan Geeta Prakashan
सूक्ष्म शिक्षण और हास्य-भावना के चमत्कार
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चुप कर, अभी नहीं (उपन्यास) कोरोना त्रासदी के बीच दो अनाथ किशोर कैसे अपना जीवन संवारते हैं और अंत में जीवन-साथी बनते हैं, की करुण गाथा.
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https://ksb72.wordpress.com/2024/04/07/%e0%a4%aa%e0%a4%a4%e0%a4%bf-%e0%a4%aa%e0%a4%a4%e0%a5%8d%e0%a4%a8%e0%a4%bf-%e0%a4%b5%e0%a4%bf%e0%a4%ae%e0%a4%b0%e0%a5%8d%e0%a4%b6-%e0%a4%95%e0%a4%b9%e0%a4%be%e0%a4%a8%e0%a5%80/
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Human Resouce Development In Education
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क्या कहूँ, क्या छोड़ूँ, समझ में कुछ आता नहीं, 
वक्त तो मित्रवर कभी किसी की बाट देखे नहीं।
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Romance In Corona ( A love Story That Unfolded In Corona Times. Lover Walks On Foot To Meet His Love In Kolkata)
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Complete Manual For Nursery Education Planning.
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New Dimensions Of Value Education (A review of causes that led to steep fall of character)
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नैतिक अपकर्ष, कारण और निदान (शिक्षा के गिरते स्तर पर समीक्षात्मक ग्रन्थ)
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आंसू मेरे दिल की जबान (कहानी) https://www.facebook.com/kshazansingh.bharadwaj/posts/pfbid02Uv9bZhPVC3hPU4g6KjHYaZmhzPDRJMjKKxQ9LegYtqkibWpfx95XXerFAtnNzdFSl
पार्श्वांग्न में प्रणय उपवन (उपन्यास)
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Love Beyond Horizons (novel)
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इश्क-ए-जिंदगी (उपन्यास) कथानक लीक से हट कर है.
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शाश्वत प्रेम (उपन्यास)
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Reborn For Perennial Love:   Novel
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Society, De We Know What It Is?
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Humour In Happiness Curriculum is a book which tells how germane humour can be used by teachers. Very useful for the teachers.
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Women's Emancipation Failed
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Ther Butterfly in Her Is Dead is a novel that brims with love; and thereafter hate.
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डूबता हुआ ज़हाज़ करता खूब आवाज़, करे चाहे जित्ता शोर हमें क्या है एतराज़? चूहों को भी हो जाता डूबते ज़हाज़ का भान. छोड़ देते हैं ज़हाज़ को बचाने हेतु अपनी जान. बीजेपी का है वही हाल कोई नहीं चाहता टिकिट कोई नहीं है अब जानता कब गिर जाए कोई विकिट?
The Unsung Martyred Tawayafs
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इश्क ए जिंदगी (उपन्यास)
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Reborn For Perennial Love (Novel)
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राह से भटकता नारी पुरुष विमर्श
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Love Beyond Horizons (Novel)
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Women's Emancipation Derailed
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राहुल गांधी को ये यात्रा क्यों करनी पड़ी, उसकी विस्तृत विवेचना
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The Unsung Martyred Tawayafs
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The Butterfly In Her Is Dead (Novel)
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Humour In Classroom
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राजकुमारी रूपमती की आत्मकथा
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शाश्वत प्रेम (उपन्यास)
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